Tuesday, December 11, 2007

क़र्ज़ की महिमा

अखबार में छपी एक रपट देखकर
मेरे मित्र ने कहा
यार, हम सब पर विदेशी क़र्ज़
तो बहुत चढ़ गया है
क़र्ज़ का यह मर्ज़ तो और बढ़ गया है

मैंने कहा क़र्ज़ की चिंता तू व्यर्थ करता है
ऋण की आग में तिल तिल जलता है
क़र्ज़ लेना हमारे देश की शान है
जो जितना ऋणी है वो उतना ही महान है



क़र्ज़ लेते रहने से
बड़ों का संग बना रहता है
देश अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का
अंग बना रहता है

क़र्ज़ तले रहना
विकसित होने की निशानी है
हर विकासशील देश की
यही कहानी है

क़र्ज़ की महिमा यार बड़ी पौराणिक है
प्रजातंत्र में क़र्ज़ लेना पूर्णतः संवैधानिक है
चार्वाक हो या काका हाथरसी
सब क़र्ज़ की महिमा गाते रहे हैं
"ऋणम कृत्वा घ्रितम पिवेत" और
"कर्जा लेकर मर जा" जैसी सूक्तियाँ बताते रहे हैं

क़र्ज़ के बिना जीवन में
कोई चारा नहीं है
जिसने क़र्ज़ न लिया हो
ऐसा कोई बेचारा नहीं है

देश का क़र्ज़, विदेश का क़र्ज़,
सेठ का क़र्ज़, साहूकार का क़र्ज़
माँ का क़र्ज़, बाप का क़र्ज़..
गुरु का क़र्ज़... प्रभु का क़र्ज़
इसका क़र्ज़, उसका क़र्ज़
न जाने किसका किसका क़र्ज़

क़र्ज़ में जन्म लिया है
क़र्ज़ में मर जाना है
क़र्ज़ तो जीवन साथी है
क़र्ज़ से क्या घबराना है.

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