Tuesday, December 25, 2007

राजनेता की नरकयात्रा

मगनलाल थे नेता विकट
लेकिन जब उनका कटा टिकट
सीधा नरक गए वो मरकर
मिलते थे यमराज भी उनसे डरडर कर।

विधि का विधान था वरना
रिस्क ऐसा हरगिज न लेते

मगनलाल जैसों को मृत्युलोक में ही

सड़ने को छोड़ देते ।


मगनलाल से नहीं लेकिन

छुआछूत की बिमारी का डर था

फैलने का नरकलोक में

राजनीतिक महामारी का डर था ।

मजबूरी थी मगनलाल को
नरकलोक पहुँचाया गया
यमदूतों के द्वारा उन्हें

कानून नरक का बतलाया गया ।

नरकलोक में राजनीति
पूर्णतः वर्जित है

नष्ट हो जाएगा वरना

पुण्य किया जो अर्जित है ।

चेतावनी सुन कर मन ही मन
कुटिलता से मुस्काये मगनलाल

यमदूत के अल्पज्ञान पर

आया उन्हें बड़ा मलाल।

मृत्युलोक का लगता है यम् को
नहीं है बिल्कुल भी ज्ञान

राजनीती में चलता है कहीं

भला पुण्य का विधान ।

मन ही मन सोचा उसने
पुण्य ही नहीं तो नष्ट भला क्या होगा

नरक का विधान तोड़ने से

कष्ट भला क्या होगा ।


प्रकट में तो मगनलाल ने

सहमति में सर हिलाया

पर अपनी राजनीतिक चालों का

पहला निशाना यमदूत को ही बनाया ।


नहीं तोडूंगा नियम नरक के

है मेरा ये तुमसे करार

पर इतना तो बता दे भैया

मिलती है तुझे कितनी पगार ।

यमदूत यमदूत था पर भोला था
बता दी उसने अपनी पगार

मगनलाल के लिए काफी था इतना

मिल गया उसे मनचाहा हथियार ।

यम् के वेतन से नहीं था मतलब
वह तो स्वर्ग का अभिलाषी हुआ था

इच्छा थी उसकी लोग कहें वह भी

मरने पर स्वर्गवासी हुआ था ।

एक आह भरी और बोला
इतनी कम पगार समय कैसे तू गुजारता होगा

दो वक्त की रोटी भी भला

कैसे तू जुगाड़ता होगा ।

मृत्युलोक का आजमाया हुआ
मगनलाल ने चलाया तीर

कहा जरूर तू पिछडा होगा

कौन भला समझेगा तेरी पीड़।

पर फिक्र न कर तू यमदूत
मगनलाल अब आ गया है

जो खोया था मृत्युलोक ने

तेरा नरकलोक वह पा गया है ।


पृथ्वी पर मैं पिछडों का

अव्वल दर्जे का नेता था

अगडे पिछडों के सामाजिक संघर्ष का

मैं ही तो प्रणेता था ।

मृत्युलोक में इस मगनलाल से
सूरमा भी घबड़ाते थे

तोड़ना जब समाज को होता था

लोग मेरे पास ही आते थे ।

पर रहने दे तू इन बातों को
सौ का तू यह नोट रख ले

अंग्रेजी दारु की जुगाड़ कर कहीं से

मुझे पिला और तू भी चख ले ।

मदिरा मृतुलोक में रे यम्
महती कार्य करवाती है

ठेका पट्टा चुनाव प्रमोशन में

बडे काम यह आती है ।

नेता की मायावी बातों से
यमदूत भी सम्मोहित हुआ

करवद्ध हो विनयशील स्वर में

मगनलाल से संबोधित हुआ ।

मदिरा के नाम पर श्रीमान
सिर्फ सुरा यहाँ पायी जाती है

वह भी स्वर्गलोक से कभीकभार

स्मगल कर के लायी जाती है ।


आप कहें तो यह सेवक

सुरापान की कुछ जुगत करे

सौ के नोट से पर भला क्या होगा

कुछ और मिले तो बात बने ।

देख कर यम् के नए रुप को
हैरत से उसने पूछा

भ्रष्टाचार के इस पौधे को

नरकलोक में है किसने सींचा।

लगता है कुछ बंधु बांधव
पहले ही कर चुके यहाँ प्रवेश

भ्रष्टाचार के तरुवर को बस
फलना रह गया है शेष ।

स्वर्गवासी होने की अभिलाषा मेरी
लगता है जल्द ही पूरी होगी
भ्रष्टाचार के ऐरावत के लिए

भला स्वर्ग की भी क्या दूरी होगी ।

नरकलोक में कुछ रहा न वर्जित
मगनलाल के सद्प्रयासों का फल था

भ्रष्टाचार का आजमाया हुआ नुस्खा

नरकलोक में भी सफल था ।

सुरा सुंदरी दोनों सुलभ थे
सिर्फ नोट खर्चने होते थे

मृत्युलोक की भांती ही अफसर

लम्बी तान कर सोते थे ।

पानी जब सर से गुजरने लगा
नरकलोक भ्रष्टाचार में डूबने उतरने लगा
विचलित हुए तब यमराज भी
सोचा छीन जाएगा ऐसे तो मेरा ताज भी ।

क्यों न इस बला को
स्वर्गलोक भिजवाया जाये

इन्द्र को भी पृथ्वी लोक की

स्वाद राजनीति का चखाया जाये ।

जैसे तैसे मगनलाल को
स्वर्गलोक भिजवाया गया

नरकलोक को इस महामारी से

निजात किसी तरह दिलाया गया ।

मगनलाल की अभिलाषा तो पूरी हुई
स्वर्गलोक का जो होगा देखा जाएगा

पर मेरी मति कहती है आजिज हो उसे

वापस मृत्युलोक में ही फेंका जाएगा ॥

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