Sunday, January 27, 2008

एक और दांडीमाचॅ

सावधान बापू ,
होशियार
निकला है एक बार
फिर से दांडी मार्च ।

तुमने तो खिलाफत की थी
अंग्रेजी हुकूमत की
तोड़ कर कानून नमक का
मान मर्दन किया था
फिरंगियों का ।

इन्हें करनी है किसकी खिलाफत
किसका मानमर्दन करना है
हमारा या तुम्हारा ।

कौन सा कानून बचा है
देश का
नहीं तोड़ा है इन्होंने जिसे
अब क्या तोड़ेंगे
देश को या समाज को ।


तुम्हें तो स्वाधीनता प्राप्त करनी थी
लोगों को एक किया था
दांडी मार्च के बहाने
इन्हें क्या पाना है
सत्ता कुर्सी या पावर ।

सावधान बापू ,
होशियार ।
तुम्हें , तुम्हारी दांडी यात्रा को
तुम्हारी अहिंसा को
तुम्हारे नाम को
बेचा जा रह है
राजनीति के बाजार में ।

पुरानी रवायत है
हमारी राजनीति की ये
हम बेचते हैं तुम्हें
तुम्हारी जैसी अन्य महान आत्माओं को
अपनी सुविधानुसार
और खरीदते हैं बदले में
अपने लिए वोट
ताकि भोग सकें
सत्ता सुख ।

ये जो लोगों का हुजूम
दिख रह है तुम्हें
इस आधुनिक
दांडी मार्च में
ये इंसान नहीं हैं
महज वोट हैं ये
और हैं साथ में चंद
वोटों के सौदागर भी ।

छोटी सी यात्रा थी तुम्हारी
दांडी तक की
लक्ष्य विशाल था
तिरंगा लहराने का
लाल किले पर ।

आधुनिक दांडी की यात्रा
भी छोटी है
पर लक्ष्य तुमसे भी विशाल

काबिज होना है
देश की सत्ता पर
और छोटे क्षत्रपों को
भी मिलाना है
अपने साम्राज्य में
जो भोगने नही देता
इन्हें चैन से सत्ता सुख ।

तुम तो सत्य के पुजारी थे
असत्य के देवता ये
अहिंसा मंत्र था तुम्हारा
हिंसा संबल इनका
तुम्हारा था जो देश प्यारा
स्वार्थ सिद्धि का साधन इनका ।

इसलिए सावधान बापू ।
सावधान इन राजनीतिक प्राणियों से
खुश न हो जाना
तुम कहीं
माला चढ़ायें ये प्रतिमा
पर जब तुम्हारी
समझ लेना है इनका
ये कोई पाप को
ढकने का बहाना ।

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