आज की ताजा ख़बर. शीला दीक्षित अब तेल बेचेंगी. उनके पास और कोई चारा भी नहीं है. अगर वो तेल नहीं बेचेंगी तो उनकी सरकार तेल बेचने चली जायेगी. कल से दिल्ली की गलियों चौराहों पर शीला दीक्षित और उनके मंत्रिमंडल के लोग- तेल ले लो, ६० रूपये किलो तेल ले लो- चिल्लाते नजर आयें तो चौंकिएगा नहीं. मुई राजनीति होती ही है ऐसी. कब किसे तेल बेचना पड़े और कब कौन तेल लेने चला जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता है. मंहगाई की मार वैसे तो आम आदमी को झेलनी पड़ रही है पर जनता के पलटवार का क्या नतीजा होता है, शीला दीक्षित जानती हैं और बीजेपी वाले तो इसे भुगत चुके हैं, इसी दिल्ली में. प्याज जैसी निर्जीव चीज कैसे स्वयंभू समझने वाले नेताओं को धूल चटाती है, श्रीमती दीक्षित जानती हैं. आख़िर उन्हें भी तो गद्दी मंहगाई की वजह से हुई पलटवार से ही मिली थी. लिहाजा श्रीमती दीक्षित ने सोचा कि इससे पहले कि उनकी सरकार तेल बेचने चली जाए क्यों न वही तेल बेचना शुरू कर दें. और हाँ, न्यूज़ चैनलों वाले भाइयों की तो बांछें खिल गयी होंगी, इस ख़बर से . कोई आश्चर्य नही अगर भाई लोग टीआरपी के चक्कर में दिल्ली सरकार के मंत्रियों को बाकायदा तेल बेचने के लिए बैठने पर राजी कर लें. मुम्बईया फिल्मों की तरह राजनीति में भी भेड़चाल का बोलवाला है ये तो सभी जानते हैं. अब अगर कल को मनमोहन सिंह एंड पार्टी भी श्रीमती दीक्षित से क्लू ले कर, तेल ले लो-तेल ले लो, शुरू कर दें तो मुझे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा, आपको हो तो हो क्योंकि सत्तामोह भइया आदमी से कुछ भी करा सकता है. बहरहाल हम तो बैठ कर तेल देखेंगे और तेल की धार देखेंगे.
Thursday, April 10, 2008
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2 comments:
भाई इनका यानि राजनीति वालो का यह धंधा है .
तेल देखो तेल की धार देखो ये तो रेत मे से तेल निकाल सकते है
आप भड़ास निकाल ही रहे हैं तो भड़ास पर पर ही निकालते तो पढ़ने में सुविधा होती.अब तो भ्र्ष्टाचार नैतिकता हो गयी है इसके बारे में कह बोल कर लगता है अपना समय खराब कर रहे हैं.
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