Monday, April 28, 2008

आई पी एल -मनोरंजन या साजिश?

आख़िर वही हुआ जिसका डर मुझे तब से सता रहा था जबसे आई पी एल नाम का तमाशा शुरू हुआ था । मेरा शुरू से ही ये मानना रहा है कि आई पी एल का ढांचा तैयार ही किया गया है भारतीयों के बीच दरार पैदा करने के लिए । पहले भी भड़ास पर कई लोगों ने ऐसी आशंका जतायी है। हरभजन और श्रीशांत के बीच जो हुआ , वह इस आशंका का एक छोटा सा नमूना है। कुछ और नमूने भी लोगों ने देखे होंगे । द्रविड़ जैसे सम्मानित खिलाड़ी के चौके पर उनके घरेलू मैदान के आलावा कहीं ताली तक नहीं बजती है, सहवाग जैसे लोकप्रिय खिलाड़ी के तूफानी अर्धशतक पर स्टेडियम में सन्नाटा छाया रहता है, अनुरोध करने पर भी एक ताली तक नहीं बजती है । खेल इतना स्वार्थपरक तो कभी नहीं था। दरअसल ये स्वार्थपरता नहीं बल्कि क्षेत्रीयता का जहर है जो लोगों के दिलों में इतने गहरे उतार देने की साजिश है जिसमें एक देश एक लोग का जज्बा घुट कर दम तोड़ दे । मेरी बात अभी कुछ अजीब सी लग सकती है परन्तु इसपर गहरे सोचने की जरूरत है। अब, हरभजन-श्रीशांत का ही मामला लें । किसकी गलती है किसकी कितनी गलती है यह बहस का मुद्दा हो सकता है परन्तु घटना के बाद की प्रतिक्रियाएं सोचनीय हैं । केरला क्रिकेट संघ द्वारा हरभजन को सजा देने की मांग और मुंबई इंडिंयंस द्वारा हरभजन के सपोर्ट में खड़े होना कुछ अच्छा संकेत नहीं है। आई पी एल को डिजाईन ही इस तरह से किया गया है कि इससे क्षेत्रीयता को बढ़ावा मिले। लोग किस खिलाड़ी के लिए ताली बजा रहे हैं यह मुख्य नहीं है , वो सिर्फ़ अपने क्षेत्र के लिए ताली बजा रहे हैं , यह मुख्य भी है और चिंतनीय भी। एक राज ठाकरे काफी नहीं था जो आठ-आठ राज ठाकरे देश को बांटने के लिए कमर कसे खड़े हैं । और हम हैं कि अधनंगी लड़कियों को देख कर ताली बजाने में मशगूल हैं। क्योंकि हम विकसित हो रहे हैं ।

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