Monday, December 17, 2007

गाँधी गोडसे संवाद

इधर कुछ दिनों की बात है
टहलते हुए बापू
कहीं
गोडसे से टकरा गए
अंक पास में उसे भरा बापू ने
छलक पड़े बरबस ही आंसू
कहा तेरा ऋणी हूँ गोडसे, मेरी कृतज्ञता स्वीकार करो।


व्यर्थ ही घृणा करते हैं लोग तुझसे
तुझे हत्यारा समझते हैं मेरा
नादाँ हैं नहीं जानते
तुने क्या उपकार किया है मुझपर
सचमुच में तेरा ऋणी हूँ गोडसे
मेरी कृतज्ञता स्वीकार करो।


तू अगर न मारता मुझे
तू अगर न ताड़ता मुझे
अपने वतन की दुर्दशा मैं कैसे सहता
सपनों के भारत की ये दशा मैं कैसे सहता
भूखों की पुकार मैं कैसे सहता
अबलाओं का चीत्कार मैं कैसे सहता
माँ बहनों का बलात्कार मैं कैसे सहता
मैं तेरा ऋणी हूँ गोडसे मेरी कृतज्ञता स्वीकार करो।


तू ही बता मेरे भाई
बेटियों को जलता क्या मैं देख पाता
बाप को बेबसी में
हाथ मलता क्या मैं देख पाता
हरी का जन कहा था जिसे मैंने
उसे सिर्फ वोट बनते क्या मैं देख पाता।

नैतिकता में इतनी गिरावट क्या मैं देख पाता
धर्म राजनीति कि ये मिलावट क्या मैं देख पाता
था अहिंसा का मैं पुजारी
सर्वत्र हिंसा क्या मैं देख पाता।


भ्रष्ट्र राजनीति भ्रष्ट्र नेता भ्रष्ट्र अफसर भ्रष्ट्र प्रणेता
भ्रष्ट्र लोक भ्रष्ट्र तंत्र ऐसा लोकतंत्र क्या मैं देख पाता।

तू न लेता प्रतिकार अगर
तू न करता उद्धार अगर
यह अनाचार यह अनीति
क्या मैं देख पाता
सिर्फ वोट की ये राजनीति क्या मैं देख पाता
गुलाम भारत की आजादी देखी थी मैंने
आजाद भारत की ये गुलामी क्या मैं देख पाता
इसलिए तेरा ऋणी हूँ गोडसे मेरी कृतज्ञता स्वीकार करो

जड़वत हतप्रभ सा गोडसे बापू की बातों को सुनता रहा
आंखों से बहती रही आँसुओं की अविरल धारा
प्रायश्चित के इन आंसुओं में
पाप उसका धुलता रहा।


लिपट कर बापू के पैरों से
इतना ही वह कह सका
तुझे मार कर बापू
यह गोडसे तो शर्मिंदा है
पर अफ़सोस है मेरी धरा पर आज भी
अनगिनत गोडसे जिंदा हैं

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