Monday, December 24, 2007

जनता आख़िर कहाँ जायेगी

भूख से हो रही मौत पर
विपक्ष और मीडिया मचा रहे थे शोर
सरकार न चिंतित थी
न परेशान
बस थोडा सा
हो रही थी बोर ।


उसने सोचा चलो
इस किस्से को ही
ख़त्म कर देते हैं
करा कर कुछ
मृतकों का पोस्टमार्टम सब का मुँह
बंद कर देते हैं।

नमूने के तौर पर
एक मृतक का
पोस्टमार्टम कराया गया
पारदर्शिता की खातिर
विपक्ष और मीडिया
दोनों को बुलाया गया ।

पोस्टमार्टम के बाद
चिकित्सक ने कहा
इसका पेट तो
ठसाठस भरा है
बन्दा कमसेकम
भूख से तो नहीं मरा है ।


विपक्ष के एक नेता ने
हैरत से कहा
मृतक को मैं
अच्छी तरह से जानता हूँ
उसे उसके नाम से पहचानता हूँ

वह कई दिनों से भूखा था
वह भूख से ही मरा है
पर उसका पेट कैसे
भरा है।


नेता की बातें सुन
मुर्दा कुनमुनाया

फिर भुनभुनाया
ठीक कह रहे है नेता जी
और चिकित्सक भी सही है
मैं भूख से ही मरा हूँ
और मेरा पेट भी भरा है ।


पर हैरान मत हो

मैं बताता हूँ
कि दरअसल

माजरा क्या है।

मेरा पेट उन्हीं
वादों और सपनों से भरा है
आधी सदी से जिसपर
इस देश का लोकतंत्र खड़ा है।


परन्तु बाबूजी
वादों और सपनों से
पेट तो भर सकता है
पर भूख नही मिटती है
सपनों कि रंगीनियाँ
हकीकत के धरातल पर
कहाँ टिकती है ।


फिर मुर्दे ने अचानक
मुद्रा बदली
किसी बाजीगर कि तरह
हाथ हवा मैं लहराया
और एक विशेष अंदाज से
अपना पेट ठकठकाया।


पेट के उस हिस्से से
जो पोस्टमार्टम के बाद
अभी तक खुला था
निकल कर हवा में
लहराने लगे
तरह तरह के वादे
तरह तरह के सपने
अधिकांश नेताओं के दिए थे
थे कुछ उसके अपने ।


वादे कुछ नए थे
कुछ पुराने
कुछ आजादी के समय के थे
एक्सपायर हो चुके थे
कुछ को एक्सपायर करने में
अभी टाइम था
और कुछ वादों को

करना पड़ रहा ओवरटाईम था ।

गरीबी , बेरोजगारी मिटाने जैसे
कुछ वादे भी
हवा में लहरा रहे थे
जो कभी एक्सपायर नहीं करते
किसी भी चुनाव में ये
मिसफायर नहीं करते ।


इतनी वेरायटी वाले वादों को
एक साथ देख कर
विपक्ष और सरकार
दोनों का मन डोल गया
सरकार का नुमाइंदा

विपक्ष के नुमाइंदे से
आंखों ही आंखों में
कुछ बोल गया ।


फिर दोनों ने आपस में
सारे वादों को बाँट लिया
करने को प्रयोग अगले चुनाव में
सुंदर सपनों को छाँट लिया
वादों को नफे नुकसान के
तराजू में तोला
फिर विपक्ष फुसफुसा कर
सरकार से बोला ।


हमारा मनपसंद खेल

नजदीक आ रह है
अंग-अंग देखो कैसे
चुनाव-चुनाव गा रह है
चलो हम वादे सपनों का
खेल खेलेंगे
झेलना जिनकी किस्मत है
इस बार भी झेलेंगे ।


मैं तुझ पर आरोप लगाऊंगा

भूखमरी बढ़ाने के
तुम वादे करते रहना
गरीबी मिटाने के
वही देश पर राज करेगा
जिसके झांसे में
जनता आएगी

या तो तुझे वोट देगी
या मुझे जिताएगी
लाचारी है जनता
आख़िर कहाँ जायेगी।

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