असंख्य बिन्दुओं का संग्रह
संग्रह का गमन और पड़ाव
क्षण -क्षण ।
बटोरता अनुभवों के कण
व्यक्तित्व का निर्माण करता
गमन करता
बिन्दुओं का वह संग्रह
क्षण क्षण ।
उसका गमन और पड़ाव
गति और स्थिति उसकी
दोनों एक ही क्षण
विलक्षण ।
ऐसे ही असंख्य विलक्षण
और विश्व गया है बन
बिन्दुओं पर बैठा
इस विश्व को देखता
हमारा मन ।
मन जिसने पूर्णत्व को
इश्वरत्व को
कर दिया है कण कण ।
Monday, April 28, 2008
सृष्टि चक्र
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1 comments:
bahut sundar badhaai .
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