आज का टाइम्स ऑफ़ इंडिया पलट रहा था तो अचानक एक विज्ञापन पर नजर चली गयी. आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने राज्य में गरीबी रेखा से नीचे जी रहे लोगों को २ रूपये किलो चावल मुहैय्या कराने जा रहे हैं.बड़ी खुशी की बात है. पर एक चौथाई से भी ज्यादा के पन्ने पर, एक अखबार के दिल्ली एडिशन में, वो भी अंगरेजी में छपे इस विज्ञापन का औचित्य समझ में नहीं आया. किसे दिखाने के लिए है ये विज्ञापन. कम से कम पचास हजार का तो होगा ही ये विज्ञापन. और अखबारों में भी छपे होंगे. और भी जगहों से छपे होंगे. मुझे विज्ञापनों के रेट का ठीक से अंदाजा तो नहीं है परन्तु प्रचार के सारे खर्चों को जोडें तो एकाध करोड़ का खर्च तो बैठा ही होगा. इतने पैसों में कितना चावल, दो रूपये के हिसाब से आ जाता ये आप ख़ुद ही जोड़ लें. खैर ये तो एक बात हुई. मजेदार बात ये है कि गरीबों को दो रूपये किलो चावल देने का सपना रेड्डी जी पिछले चार सालों से संजो रहे थे और अब जा कर उनका सपना साकार हुआ. चुनावों से कुछ दिन पहले. क्या टाइमिंग है. सपने भी टाइम देख कर साकार होने लगे हैं. कोई रेड्डी जी से पूछे इन चार सालों में उन्हें किस मजबूरी ने रोका था और प्रदेश के साथ साथ लोकसभा चुनावों से ठीक पहले अचानक ऐसा क्या हो गया कि उनकी सारी मजबूरियां एकदम से ख़त्म हो गयीं. और कोई उनसे ये भी पूछे कि गरीब बाप की बेटी की जवानी की तरह रोज बढ़ती मंहगाई के इस दौर में, जिसके लिए उन्हीं की पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार जिम्मेदार है, आंध्रा के ग़रीब, फकत चावल ही फांकेंगे या ४०-४५ रूपये किलो वाली दाल या दाल से बनने वाली चीजें भी मिलाएँगे. इतना ही नहीं रेड्डी साहब ने फौरन ही इस दरयादिली की कीमत भी वसूलने की जुगत कर ली. उन्होंने लोगों से इस favour को appreciate भी करने की अपील की है. अब इस apprecition का वोटों से नाता तो सभी जानते हैं. हद है भई . अभी लोगों के पेट में चावल गया भी नहीं है और उन्होंने कीमत वसूलने का काम शुरू कर दिया. इसे कहते हैं इस हाथ ले उस हाथ दे . वरुण राय
Wednesday, April 9, 2008
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2 comments:
:)
bahut sahi aur khari baat kahne ke liye aapka dhanyvaad.aaj pahli baar aapke blog par aayaa.achha hi nahi bilkul sachcha lagaa.
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